मैं ने यहोवा को निरन्तर अपने सम्मुख रखा है इसलिये कि वह मेरे दाहिने हाथ रहता है मैं कभी न डगमगाऊगा। (पुनाराम साहू)

01 परन्तु हे यहोवा, तू तो मेरे चारों ओर मेरी ढाल है, तू मेरी महिमा और मेरे मस्तिष्क का ऊचा करने वाला है। (पुनाराम साहू )

02 मैं ने यहोवा को निरन्तर अपने सम्मुख रखा है इसलिये कि वह मेरे दाहिने हाथ रहता है मैं कभी न डगमगाऊगा। (पुनाराम साहू )

निश्चय भलाई और करूणा जीवन भर मेरे साथ साथ बनी रहेंगी, और मैं यहोवा के धाम में सर्वदा वास करूंगा। (पुनाराम साहू )

04 हे यहोवा, मेरा न्याय कर, क्योंकि मैं खराई से चलता रहा हू, और मेरा भरोसा यहोवा पर अटल बना है। (पुनाराम साहू )

यहोवा मेरा बल और मेरी ढाल है, उस पर भरोसा रखने से मेरे मन को सहायता मिली है, इसलिये मेरा हृदय प्रफुल्लित है, और मैं गीत गाकर उसका धन्यवाद करूंगा।(पुनाराम साहू )

मनुष्य की गति यहोवा की ओर से दृढ होती है, और उसके चलन से वह प्रसन्न रहता है। चाहे वह गिरे तौभी पड़ा न रह जाएगा, क्योंकि यहोवा उसका हाथ थामे रहता है।(पुनाराम साहू )

धर्मियों की मुक्ति यहोवा की ओर से होती है, संकट के समय वह उनका दृढ़ गढ़ है।(पुनाराम साहू )

08 यहोवा मेरे लिये सब कुछ पूरा करेगा, हे यहोवा तेरी करुणा सदा की है। तू अपने हाथों के कार्यों को त्याग न दे।(पुनाराम साहू )

  1. यहोवा मेरी ओर है, मैं न डरूंगा। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है? (पुनाराम साहू )
  2. क्योंकि तू मेरा शरणस्थान है, और शत्रु से बचने के लिये ऊंचा गढ़ है।(पुनाराम साहू )
  3. सचमुच वहीं मेरी चट्टान, और मेरा उद्धार है, वह मेरा गढ़ है, इसलिये मैं न डिगूंगा।(पुनाराम साहू )
  4. वह बुरे समाचार से नहीं डरता, उसका हृदय यहोवा पर भरोसा रखने से स्थिर रहता है। (पुनाराम साहू )
  5. भला होता कि तेरी विधियों के मानने के लिये मेरी चालचलन दृढ़ हो जाए।(पुनाराम साहू )
  6. मैं ने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरुद्ध पाप न करूं।(पुनाराम साहू )

15 मैं ने अपने पावो को हर एक बुरे रास्ते से रोक रखा है, जिस से मैं तेरे वचन के अनुसार चलू। (पुनाराम साहू )

16 जब मैं तेरे धर्ममय नियमों को सीखूगा, तब तेरा धन्यवाद सीधे मन से करूंगा। (पुनाराम साहू )

  1. जिस समय मुझे डर लगेगा, मैं तुझ पर भरोसा रखूंगा। परमेश्वर की सहायता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूंगा, परमेश्वर पर मैं ने भरोसा रखा है, मैं नही डरूगा। कोई प्राणी मेरा क्या कर सकता है? (पुनाराम साहू )
  2. मेरी विपत्ति के दिन वे मुझ पर आ पड़े। परन्तु यहोवा मेरा आश्रय था।(पुनाराम साहू )
  3. यदि मुझे विश्वास न होता कि जीवितों की पृथ्वी पर यहोवा की भलाई को देखूंगा, तो मैं मूर्च्छित हो जाता। यहोवा की बाट जोहता रहय हियाव बान्ध और तेरा हृदय दृढ रहेय हा, यहोवा ही की बाट जोहता रह। (पुनाराम साहू )
  4. मैं यहोवा के पास गया, तब उसने मेरी सुन ली, और मुझे पूरी रीति से निर्भय किया। (पुनाराम साहू )

21 धर्मी पर बहुत सी विपत्तियां पड़ती तो है, परन्तु यहोवा उसको उन सब से मुक्त करता की रक्षा करता है, और उन में से एक भी टूटने नहीं पाती। है। वह उसकी हड्डी हड्डी (पुनाराम साहू )

  1. मेरे हृदय और मन दोनो तो हार गए है, परन्तु परमेश्वर सर्वदा के लिये मेरा भाग और मेरे हृदय की चट्टान बना है।(पुनाराम साहू )
  2. जब मेरे मन में बहुत सी चिन्ताएं होती हैं, तब हे यहोवा, तेरी दी हुई शान्ति से मुझ को सुख होता है।(पुनाराम साहू )

24 परमेश्वर मेरा बल और भजन का विषय है, वह मेरा उद्धार ठहरा है।(पुनाराम साहू )

  1. वह प्रतापी राजा कौन है? परमेश्वर जो सामर्थी और पराक्रमी है, परमेश्वर जो युद्ध में पराक्रमी है।(पुनाराम साहू )

 

26 अपने डग सनातन की खंडहर की ओर बढ़ाय अर्थात् उन सब बुराइयों की ओर जो शत्रु ने पवित्र स्थान में किए हैं। (पुनाराम साहू )

27 मेरा हाथ उसके साथ बना रहेगा, और मेरी भुजा उसे दृढ रखेगी।(पुनाराम साहू )

28 और हमारे परमेश्वर यहोवा की मनोहरता हम पर प्रगट हो, तू हमारे हाथों का काम हमारे लिये दृढ कर, हमारे हाथों के काम को दृढ़ कर। (पुनाराम साहू )

29 परमेश्वर हमारा शरणस्थान और बल है, सकट में अति सहज से मिलने वाला सहायक। इस कारण हम को कोई भय नहीं चाहे पृथ्वी उलट जाए, और पहाड़ समुद्र के बीच में डाल दिए जाए। (पुनाराम साहू )

  1. यहोवा पिसे हुओं के लिये ऊंचा गढ़ ठहरेगा, वह संकट के समय के लिये भी ऊंचा गढ़ ठहरेगा।(पुनाराम साहू )

31 तू मेरे छिपने का स्थान है; तू संकट से मेरी रक्षा करेगा; तू मुझे चारों ओर से छुटकारे के गीतों से घेर लेगा। मैं तुझे बुद्धि दूंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा, मैं तुझ पर कृपा दृष्टि रखूंगा और सम्मत्ति दिया करूंगा। (पुनाराम साहू )

32 जितने यहोवा को पुकारते है, अर्थात् जितने उसको सच्चाई से पुकारते है; उन सभों के वह निकट रहता है। वह अपने डरवैयों की इच्छा पूरी करता है, ओर उनकी दोहाई सुन कर उनका उद्धार करता है।

  1. जिस दिन मैंने पुकारा, उसी दिन तू ने मेरी सुन ली, और मुझ में बल दे कर मुझे हियाव बंधाया।
  2. सचमुच मैं चुपचाप होकर परमेरश्वर की ओर मन लगाए हूं, मेरा उद्धार उसी से होता है। सचमुच वही, मेरी चट्टान और मेरा उद्धार है, वह मेरा गढ़ हैय मैं बहुत न डिगूंगा।

35 जो परमप्रधान के छाए हुए स्थान में बैठा रहे, वह सर्वशक्तिमान की छाया में ठिकाना पाएगा। मैं यहोवा के विषय

कहूंगा, कि वह मेरा शरणस्थान और गढ़ है, वह मेरा परमेश्वर है, मैं उस पर भरोसा रखूंगा।

  1. सचमुच वही मेरी चट्टान, और मेरा उद्धार है, वह मेरा गढ़ है; इसलिये गै न डिगूंगा।
  2. हे लोगों, हर समय उस पर भरोसा रखो, उससे अपने अपने मन की बातें खोलकर कहो, परमेश्वर हमारा शरणस्थान है।
  3. यहोवा मेरा भाग है, मैं ने तेरे वचनों के अनुसार चलने का निश्चय किया है।
  4. मैं किसी ओछे काम पर चित्त न लगाऊंगा। मैं कुमार्ग पर चलने वालों के काम से घिन रखता हूं, ऐसे काम में मैं लगूगा।

40 इस्राएल यहोवा पर आशा लगाए रहे। क्योंकि यहोवा करूणा करने वाला और पूरा छुटकारा देने वाला है। इस्राएल को उसके सारे अधर्म के कामों से वही छुटकारा देगा।

41 मैं ने परमेश्वर पर भरोसा रखा है, मैं न डरूंगा। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है?

  1. जिस समय मुझे डर लगेगा, मैं तुझा पर भरोसा रखूंगा।
  2. तू ने मेरे हृदय को जाचा है; तू ने रात को मेरी देखभाल की, तू ने मुझे परखा परन्तु कुछ भी खोटापन नहीं पाया; मैं ने ठान लिया है कि मेरे मुंह से अपराध की बात नहीं निकलेगी।

44 यहोवा की शरण लेनी, मनुष्य पर भरोसा रखने से उत्तम है।

45 अपने मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़ और उस पर भरोसा रख, वही पूरा करेगा।

नीतिवचन

  1. जो धर्म में दृढ़ रहता, वह जीवन पाता है, परन्तु जो बुराई का पीछा करता, वह मृत्यु का कौर हो जाता है।
  2. यहोवा के भय मानने से दृढ भरोसा होता है, और उसके पुत्रों को शरणस्थान मिलता है।

48 यहोवा का नाम दृढ़ गढ़ है, धर्मी उस में भाग कर सब दुर्घटनाओं से बचता है।

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