- महिलाओं के कानूनी अधिकार
2 महिलाओं के कानूनी अधिकार- - महिलाओं के कानूनी अधिकार
- घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005
5 छ०ग० टोनही प्रताड़ना निवारण अधिनियम, 2005 - दहेज निवारण कानून
- भरण-पोषण (महिलाओं)
8 बलात्कार : एक अपराध
9 अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम, 1956 - महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीडन अधिनियम, 2013
- बाल विवाह निवारण अधिनियम, 192930
- बालकों का लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम, 2012
- प्रसूति (प्रसुविधा) अधिनियम, 1961
- हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956
- गर्भधारण पूर्व एवं प्रसव पूर्व निदान (पी.एन.डी.टी.एक्ट) जन सामान्य के उपयोगी कानून
- नर्सिंग होम एक्ट के अंतर्गत मरीज के प्रति जिम्मेदारी
- उच्चतम न्यायालय के गिरफ्तारी, हिरासत पूछताछ से संबंधित 11 सूत्रीय दिशा निर्देश
- सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005
- भ्रष्टाचार रोकने के कानून (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988)
- मानव अधिकार57
- भारत के नागरिकों के मूल कर्तव्य तथा राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रगान संबंधी ज्ञान
- भारतीय संविधान के अंतर्गत नागरिको के मौलिक अधिकार
- बंदियों के वैधानिक कर्तव्य एवं कारागार अपराध
- जनहित याचिका
- मानसिक अयोग्यता से पीड़ित व्यक्ति के अधिकार70
- मानसिक रोगी (चित्त विकृत व्यक्ति) के संबंध में विधिक प्रावधान
- माता पिता एवं वरिष्ठ नागरिक का भरण पोषण एवं कल्याण अधिनियम
- मोटर दुर्घटना प्रभावित व्यक्तियों को मुआवजा
- उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम
- खाद्य पदार्थों में मिलावट की रोकथाम एवं निवारण सम्बन्धी कानून
- अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम
- चेकों का अनादरण
33 प्रथम सूचना रिपोर्ट - रैगिंग
- भारतीय वन अधिनियम, 1927
- वन्य प्राणी (संरक्षण) अधिनियम, 1972
- अ.ज.जा. और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) नियम, 2007 श्रमिकों संबंधी विशेष विधि
- रोजगार गारंटी अधिनियम 2005
- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948
- ठेका श्रम (विनियमन और उत्सादन) अधिनियम, 1970
41 बाल श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986
42 अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979 - समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976
- श्रमिक कल्याणकारी योजनाएं विधिक सेवाएँ
- निःशुल्क कानूनी सहायता एवं सलाह
- लोक अदालत
47 मध्यस्थता - दैनिक उपयोगी कानून की जानकारी
49 आप सबके फायदे का कानून - कानून को जानें और समझे
- झगड़ों को कैसे रोकें ?
- छ०ग० लोक सेवा गारंटी अधिनियम, 2011
- पीड़ित क्षतिपूर्ति योजना, 2011
54 ग्ली बारगेनिंग - पैरालीगल वालिंटियर की भूमिका
महिलाओं के कानूनी अधिकार
18 साल की उम्र के बाद लड़की बालिग हो जाती है, बालिग होने के बाद उसे अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने का हक मिल जाता है, कानूनी तौर पर कोई भी व्यक्ति किसी बालिग को उसकी इच्छा के विरूद्ध कुछ भी करने को मजबूर नहीं कर सकता, यहाँ तक कि अभिभावक भी नहीं। बंद रखने, आगे पढ़ने से रोकने या जबरदस्ती शादी करने को मजबूर करने पर इसका विरोध कर सकती है, वह अदालत में इसके विरूद्ध लड़ाई लड़ सकती है।
- अगर हालत अनुकूल नहीं है तो परिवार से अलग रहने का फैसला ले सकती है।
- पैत्रिक जायदाद में हिन्दू कानून के तहत लड़की और लड़के को बराबर का हक है।
- जरूरी नहीं कि शादी के बाद आप अपना नाम या उपनाम बदले यदि आप चाहें तो विवाहपूर्व का नाम, उपनाम, विवाह के बाद भी जारी रख सकती है।
- अपने वेतन / अपने कमाई पर आपका पूरा हक है, उसे अपनी इच्छानुसार खर्च कर सकती है।
- आप केवल अपने नाम पर बैंक में खाता खोल सकती है, अनपढ़ महिलाएं भी अंगूठा लगाकर अपना खाता खोल सकती है।
- आपको अपनी शादी के समय और बाद में माता-पिता से और ससुराल में मुंह दिखाई के तौर पर जो कुछ भी मिला है वह स्त्री धन है और उस पर आपका पूरा अधिकार है।
- पति के पास जो भी जायदाद है जैसे खेती की जमीन या घर वगैरह, व पत्नी के या दोनों संयुक्त नाम पर भी रजिस्टर हो सकती है।
- राशन कार्ड पत्नी या पति किसी के भी नाम पर बन सकता है, पति के नाम पर राशनकार्ड बनाना जरूरी नही है।
- स्कूल में बच्चे का दाखिला कराते वक्त मां का नाम भी अभिभावक के रूप में देना आवश्यक है।
- अगर आपको अनचाहा गर्भ ठहर जाये तो आप किसी भी सरकारी अस्पताल में जाकर गर्भपात करा सकती है. 1971 में बने गर्भपात कानून के तहत् कोई भी गैर शादी-शुदा औरत गर्भपात करवा सकती है, गर्भपात कराना औरत का निजी फैसला है, जिसके लिये उसे किसी की इजाजत लेने की जरूरत नहीं है।
- अगर किन्ही कारणों से आपके और आपके पति के बीच कोई मतभेद या विवाद चल रहा है तो भी पति आपको घर से बेदखल नहीं कर सकता। शादी के बाद घर पर आपका भी उतना ही हक है जितना आपके पति का।
- मॉ-पिता का तलाक हो जाने के बाद भी बच्चे का अपने पिता की जायदाद में हक खत्म नहीं होता।
- कानूनी तौर पर बच्चों का असली पालक पिता होता है, मां केवल उनकी देखभाल के लिये है, अगर पिता बच्चों को नहीं देख रहा है तो मॉ अदालत में मुकदमा दायर करके अपने बच्चों की माँग कर सकती है।
- कई बार औरत को आदमी छोड़ देता है, परेशान करता है और खर्चा भी नही देता। जिससे वह और उसके नाबालिक बच्चे एक बेसहारा और मोहताज जिंदगी जीने पर मजबूर हो जाते हैं, ऐसे में कानूनन धारा 125 सी.आर.पी.सी. के तहत आपको अपने पति से गुजारा खर्चा पाने का पूरा हक है।
- 1976 में बने “समान वेतन कानून” के तहत स्त्री-पुरूष दोनो को समान कार्य के लिये समान वेतन देने की व्यवस्था की गई है। यह कानून खेत मजदूरों और दूसरे सभी उद्योगों पर लागू होता है, इस कानून के तहत कुछ उद्योगों जैसे खदानों, फैक्ट्रियों वगैरह में औरतों को रात पाली (नाइट शिफ्ट) में काम कराना मना है, पर इसके अलावा किसी तरह के काम देने में मालिक औरत होने के नाते भेदभाव नहीं कर सकता।
- यदि आपका यौन शोषण हुआ है। तो भय-संकोच या शर्म के कारण आपकी खामोशी अराजक तत्वों के हौसलें और बुलंद कर सकती है, इसलिये आपको इस तरह की कोई घटना होने पर तुरंत उसकी एफ.आई.आर. थाने में दर्ज करानी चाहिए।
- राजस्थान सरकार द्वारा 1987 में सती विरोधी अधिनियम लागू करने के बाद केन्द्रीय सरकार ने भी सती प्रथा की रोकथाम अधिनियम 1987 पास किया है, इस अधिनियम के तहत् सती बनाने वालों को हत्या के अपराध में गिरफ्तार कर कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान है, सती को महिमा मंडित करने के प्रयासों पर सात साल की सजा और 30,000/- रू. तक जुर्माने का प्रावधान है।
- बलात्कार होने के 24 घंटे के भीतर मेडिकल परीक्षण करवा लेना चाहिए। घटना के समय पहने हुए कपड़े को धोये नहीं। डांक्टरी जाँच के पहले नहायें नहीं। इससे सबूत मिट सकते है।
- यदि बलात्त्कार स्थल से प्राप्त कोई भी सामान, सिगरेट का टुकड़ा, चश्मा, रूमाल, घड़ी आदि पर अपना हाथ न लगायें उसे कपड़े से उठाकर पुलिस को दे दें। घटनास्थल की स्थिति ज्यों की त्यों रहने दें। जब तक कि पुलिस जॉच न हो जाये, क्योंकि वहाँ से वीर्य, खून के धब्बे, बलात्कार के बाल आदि पाये जाने की संभावना रहती है। यदि संभव हो तो बलात्कारी का हुलिया लिख लें। वह देखने में कैसा था, आवाज कैसे थी, कैसे कपड़े पहने थे, उसकी कोई खास आदत या वाक्यों आदि।
- घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के प्रावधान के तहत् घरेलू हिंसा के विरूद्ध महिलाएँ कड़ी कानूनी कार्यवाही करवा सकती है।
- एफ.आई.आर. की एक प्रति निःशुल्क तौर पर आपको पाने का हक है, इसलिये एक प्रति अवश्य ले लें।
- इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना प्रदत्त राशि- 300 रूपये प्रतिमाह। पात्रता 60-79 वर्ष उससे ऊपर के गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाली विधवा महिला।
- स्वीकृतिकर्ता मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद स्तर, नगरीय क्षेत्र में नगर निगम / नगर पंचायत के अधिकारी।
संम्पर्क पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग
दण्ड प्रक्रिया (जाब्ता फौजदारी) संहिता इस सहिता की धारा 125 में भरण-पोषण (खर्चा-पानी) देने बावत् प्रावधान है। यह मुस्लिम महिला को छोड़कर दूसरों को प्राप्त हो सकेगा। मुस्लिम महिला को तलाक के बाद ईद्दत की अवधि तक यह अधिकार होगा।
यह पत्नि, बच्चों के अलावा बूढ़े माँ-बाप को भी प्राप्त हो सकता है, जो अपनी संतान (लड़का-लड़की) में से किसी से भी चाहे वह शादी-शुदा हों, यह प्राप्त कर सकते हैं।
बच्चों की अभिरक्षा :-
- माता-पिता के जीवित न रहने पर या माता-पिता का तलाक हो जाने पर बच्चों का लालन व पालन किसके द्वारा होगा यह तय करने के लिये “गार्जियन एण्ड वाईस एक्ट” के नाम से एक कानून बनाया गया है।
तलाक के बाद बच्चों का क्या होगा? :-
- बच्चा अगर छोटा है तो माँ का कानूनी अधिकार है कि सात वर्ष का होने तक बच्चा उसी के पास रहेगा। पाँच साल की उम्र के बाद बच्चा किसके पास रहेगा इस बात का निर्णय अदालत बच्चे के हित को ध्यान में रखते हुये लेगी।
- बच्चे का हित अगर माँ के पास रहने में हो तो बच्चा मां को दिया जायेगा। ऐसी स्थिति में बच्चा चाहे पिता के साथ न रहता हो तो भी पिता को उसका खर्चा वहन करना पड़ेगा। न्यायालय नाबालिग बच्चों के शरीर व उसकी संपत्ति की सुरक्षा के लिये संरक्षक नियुक्ति कर सकती है जो न्यायालय के प्रति जबावदेह रहता है।
संपत्ति का अधिकार :-
- हर महिला को अपने लिये, अपने नाम से संपत्ति खरीदने और रखने का अधिकार है।
- कोई महिला संपत्ति को जो चाहे कर सकती है, चाहे वह संपत्ति उसे मिली हो या उसकी कमाई की हो।
- हर महिला को यह हक है कि अपनी कमाई के पैसे वह खुद ले वह उन पैसों से जो भी करना चाहे कर सकती है।
- महिलाओं को यह भी अधिकार है कि पुरुषों की तरह वे भी संपत्ति खरीदे या बेचे। महिलाओं को अपने माता-पिता या दूसरे रिश्तेदार की संपत्ति का हिस्सा भी मिल सकता है, यह उनके निजी कानून पर निर्भर करता है।
- निजी कानून का मतलब है, वह कानून जो किसी समुदाय पर लागू होता है। जैसे हिन्दू कानून, मुस्लिम कानून, ईसाई कानून तथा पारसी कानून आदि ।
हिन्दू स्त्रियों के संपत्ति का अधिकार :-
- आपका हिस्सा आपका अपना है और आप अपनी ईच्छानुसार निपटारा कर सकती हैं। वर्ष 1956 के पहले के कानून में हिन्दू स्त्रियों को ऐसे संपत्ति का पूरा अधिकार नहीं था,
- उन्हें सिर्फ अपने परवरिश हेतु संपत्ति का इस्तेमाल करने का हक था।
- जिसे सीमित अधिकार कहा जाता था। परंतु वर्ष 1956 के बाद से महिलाओं का संपत्ति पर पूरा हक है।
- कोई महिला चाहे तो इसे बेच सकती है, चाहे तो किसी को दान या बख्शीश दे सकती है, या वसीयत में किसी के नाम छोड़ सकती है।
- लड़कियों को भी लड़कों की तरह पिता की संपत्ति के बराबर का अधिकार दिया जा चुकाहै।
- अगर विधवा दूसरी शादी कर ले, तो भी गुजरे हुये पति से मिली संपत्ति उसकी अपनी होगी।
- वर्ष 2005 के हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन के द्वार महिलाओं को उनकी पैतृक संपत्ति में बराबर का अधिकार प्रदान किया गया है।
पत्नी के खर्चे का अधिकार :-
- पत्नी को पति से खर्चा लेने का अधिकार होता है। यदि पति पत्नि खर्चा न दे तो वह अदालत के जरिये पति से खर्चा ले सकती है। यह अधिकार हिन्दू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम 1956 के अंतर्गत दिया गया है।
- यदि पत्नी किसी ठोस कारण से पति से अलग रहती है तो भी वह पति से खर्चा माँग सकती है।
ऐसे निम्न कारण हो सकता है:-
- पति ने उसे छोड दिया हो।
- पति के दुर्व्यवहार से डरकर पत्नी अलग रहने लगी हो।
- पति को कोढ हो।
- पति का कोई और जीवित पत्नी हो।
- पति का किसी दूसरी औरत से अनैतिक संबंध हो।
- पति ने धर्म बदल दिया हो।
- किंतु अगर पत्नी व्याभिचारिणी हो या वह धर्म बदल ले तो वह खर्चा मांगने की हकदार नहीं रहती।
बच्चों, बूढे या दुर्बल माता-पिता का खर्चा पाने का अधिकार :-
हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम 1956 तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत जायज और नाजायज नाबालिग (18 साल से कम उम्र) बच्चों को माता पिता से खर्च मिलने का हक है। बूढ़े या शारीरिक रूप से दुर्बल माँ-बाप को अपने बच्चे से (बेटे हो या बेटियों) खर्चा मिलने का हक है। यह खर्चा लेने का हक सिर्फ ऐसे लोगों को है जो अपनी कमाई या संपत्ति से अपना खर्च नही चला सकते।
विधवा को खर्च पाने का अधिकार :-
- (हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम 1956) हिन्दू विधवा अपनी कमाई या संपत्ति से खर्च नहीं चला सकती हो तो उसे इन लोगों से खर्चा मिलने का हक है:-
- पति की संपत्ति में से या अपने माता-पिता की संपत्ति से।
- अपने बेटे या बेटी से उनकी संपत्ति में से।
- इन लोगों से यदि खर्चा न मिले तो उसके ससुर को उसका खर्चा देना होगा।
गिरफ्तारी :-
पुलिस अधिकारी द्वारा किसी व्यक्ति को अपनी हिरासत में लेना गिरफ्तारी कहलाता है:-
गिरफ्तारी के समय पुलिस को बताना होगा कि आपको क्यों गिरफ्तार किया जा रहा है।
सिर्फ यह कहना आवश्यक नहीं कि आपके खिलाफ शिकायत प्राप्त हुई, पुलिस को आपका जुर्म भी बताना आवश्यक है।
गिरफ्तारी के समय जोर जबरदस्ती करना गैर कानूनी है।
➤ थाने ले जाने के लिये किसी को हथकड़ी नहीं लगायी जा सकती।
कुछ अपराधों में आपको बिना वारंट भी गिरफ्तार किया जा सकता है।
वकील से कानूनी सलाह ले सकते हैं।
आपकी सुरक्षा के लिये आपके पहचान वालों या रिश्तेदारों को आपके साथ पुलिस वाले के साथ जाने का हक है।
गिरफ्तारी के बाद तुरंत पुलिस को मजिस्ट्रेट को गिरफ्तारी की रिपोर्ट देनी होगी।
➤ गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर अंदर मजिस्ट्रेट की कोर्ट में पेश करना जरूरी है।
बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के 24 घंटे से ज्यादा हिरासत में लेना गैर कानूनी है।
थाने में :-
पुलिस हिरासत में सताना, मारपीट करना या किसी अन्य तरह से यातना देना एक गंभीर अपराध है।
➤ महिलाओं को केवल महिलाओं के कमरे में ही रखा जावेगा।
जमानत :-
पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के बाद :-
मामले के सुनवाई होने के दौरान हिरासत में लिये गये व्यक्ति को कुछ बातों के लिये मुचलका लेकर हिरासत से छोड़ा जा सकता है, इसे जमानत कहते हैं।
अपराध दो प्रकार के होते हैं- जमानतीय और गैर जमानती। जमानती अपराध में गिरफ्तार
किये गये व्यक्ति को जमानत पर छोड़ने का अधिकार पुलिस को होता है जबकि गैर
जमानती में मजिस्ट्रेट को। > गिरफ्तार करते समय पुलिस को यह बताना होगा कि अपराध जमानती है या गैर जमानती।
➤ जमानत के समय कोई पैसे नहीं दिये जाते। केवल जमानत प्रपत्र पर रकम लिख दी जाती है, जिसे मुचलका जमानतनामा कहा जाता है।
जमानती जुर्म में जमानत होने पर पुलिस को आपको तुरंत छोड़ना पड़ेगा।