प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-1956) :
भारत सरकार की प्रथम पंचवर्षीय योजना निर्माण के समय अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, इनके रीति-रिवाज, रहन-सहन तथा अन्य सांस्कृतिक व अनुसंधानिक तथ्यों के अभाव में इन वर्गो के विकास हेतु योजना बनाने में कठिनाई महसूस हुई थी। इसे ध्यान में रखकर केन्द्र सरकार ने 1954 में पुराने मध्य प्रदेश, उडीसा, बिहार एवं पं. बंगाल राज्य सरकारों को केंद्र प्रवर्तीत योजना अंतर्गत आदिमजाति अनुसंधान संस्थान स्थापित करने के निर्देश दिये थे।
संस्थान के मुख्य उदे्श्य निम्नानुसार निर्धारित किए गए : –
- राज्य की अनुसूचित जनजातियों संबंधी आधारभूत सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन एवं सर्वेक्षण करना।
- अनुसूचित जनजातियों में व्याप्त समस्याओं का अध्ययन कर इनके निराकरण हेतु शासन को सुझाव देना।
- अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु शासन द्वारा संचालित योजनाओं का मूल्यांकन करना।
- अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल होने के लिये राज्य शासन को विभिन्न जातियों से प्राप्त अभ्यावेदनों के संदर्भ में उक्त जातियों का इथनोलाजिकल, एन्थ्रोपोलॉजिकल परीक्षण कर शासन को अभिमत देना कि संबंधित जाति में जनजातीय लक्षण पाया जाता है अथवा नहीं।
- अनुसूचित जाति की सूची में शामिल होने के लिये राज्य शासन को विभिन्न जातियों से प्राप्त अभ्यावेदनों के संदर्भ में उक्त जातियां अस्पृश्यता से पीडि़त है अथवा नहीं इनके परांपरागत व्यवसाय तथा सामाजिक स्तरीकरण का अध्ययन कर शासन को अभिमत देना।
- अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में शामिल किये जाने संबंधी प्रकरणों पर राज्य शासन को अभिमत देना।
- अनुसूचित जनजातियों की समस्याओं के निराकरण हेतु देश के प्रमुख विषय-विशेषज्ञों को आमंत्रित कर राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला एवं संगोष्ठियों का आयोजन करना।
- आदिवासी हितों के संरक्षण हेतु बनाये गये विभिन्न अधिनियमों तथा जनजातीय विकास से संबंधित कार्यक्रम आयोजित करना।
- जाति प्रमाण-पत्र जारीकर्ता अधिकारियों का प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना।
- माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा समस्त राज्य सरकारों को दिये गये दिशा-निर्देश के परिपालन में राज्य शासन द्वारा संस्थान में गठित जाति प्रमाण-पत्र उच्च स्तरीय छानबीन समिति के माध्यम से शासकीय सेवा में नियुक्ति एवं एवं व्यवसायिक पाठ्रयक्रमों में प्रेवश के पूर्व अनुसूचित जनजाति/जाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थियों के जाति प्रमाण-पत्रों की जॉच करना।
- आदिवासी संस्कृति का प्रलेखन एवं संरक्षण करना।
इस योजनाकाल में अनुसूचित जनजाति के लोगों के आर्थिक कल्याण हेतु 19.93 करोड़ रुपये व्यय किए गए। उक्त राशि लगभग 4,000 विद्यालय एवं 1000 आश्रम तथा सेवाश्रम स्थापित करने में खर्च की गई। 8,500 छात्रों का उच्च शिक्षा हेतु छात्रवृत्ति प्रदान की गई। इसके अतिरिक्त 2,400 मील पक्की सड़कें, 653 सहकारी संस्थाएँ, 310 बहुउद्देशीय सहकारी संस्थाएँ, 110 कुटीर उद्योग, 3200 चिकित्सा इकाईयाँ, 25 मलेरिया नियन्त्रण केन्द्र एवं 26 मातृ एवं शिशु कल्याण केन्द्रों की स्थापना जनजातीय क्षेत्रों में की गई। यद्यपि प्रथम योजनाकाल में आदिवासियों के लिए कोई पृथक कार्यक्रम लागू नहीं किया गया तथापि इनके लिए आवंटित राशि के क्रियान्वित विकास कार्यक्रमों का लाभ आदिवासी क्षेत्र के गैर-आदिवासियों ने उठाया जिनका प्रशासन तंत्र के साथ गहरा सम्पर्क था।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61) :
जनजातीय विकास के लिए इस योजनाकाल में दो अलग-अलग क्षेत्र निर्धारित किए गए जिनमें कार्यक्रमों के क्रियान्वयन हेतु केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों को 50:50 के अनुपात में वित्तीय साधनों की व्यवस्था करनी थी। इस योजनाकाल में सामुदायिक अवधारणा को राष्ट्रव्यापी बनाया गया जिसके फलस्वरूप आदिवासी-बहुल क्षेत्र भी सामुदायिक विकास कार्यक्रम की परिधि में आ गए। किन्तु जनजातीय क्षेत्र की समस्याएँ शेष भारत से भिन्न थी। बिखरी जनजातीय आबादी एवं दुर्गम पर्वतीय अंचलों में स्वास्थ्य, शिक्षा, यातायात एवं संचार सुविधाओं की संरचनात्मक कमी के कारण इन क्षेत्रों में ‘विशेष उपचार अपनाना अवश्यंभावी हो गया। फलतः 1955 में ‘विशेष बहुउद्देशीय जनजातीय विकास खण्ड’ के रूप में व्यवस्थित प्रयास द्वारा सांस्कृतिक अवरोधों को दूर करने की दिशा में कारगर कदम उठाए गए। इस योजना में कुल 4672 करोड़ रुपये के व्यय का प्रावधान था जिसमें से जनजातीय विकास हेतु 42.92 करोड़ रुपये व्यय किए गए।
‘विशेष बहुउद्देशीय जनजातीय विकास खण्ड’ सामुदायिक विकास अवधारणा का संशोधित रूप था जो गृह मन्त्रालय तथा सामुदायिक विकास मन्त्रालय द्वारा संयुक्त रूप से प्रायोजित था।
तृतीय पंचवर्षीय योजना(1961-66) :
इस योजना काल में ‘विशेष बहुउद्देशीय जनजातीय विकास खण्ड’ का नाम परिवर्तित कर ‘जनजातीय विकास खण्ड’ कर दिया गया तथा क्षेत्र की आर्थिक प्रगति, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास एवं संचार पर विशेष बल दिया गया। विकास नीति को कार्यान्वित करने के लिए इस योजनाकाल में 415 विकासखण्डों की स्थापना की गई और प्रत्येक खण्ड की 25,000 आबादी को शामिल कर कुल जनजातीय जनसंख्या के 38 प्रतिशत भाग को जनजातीय विकास-खण्डों की परिधि के अन्तर्गत लाया गया और यह निर्णय लिया गया कि यह कार्यक्रम उन सभी क्षेत्रों में पहुँचाया जाए जहाँ जनसंख्या का 50 प्रतिशत भाग आदिवासियों का है। इस योजनाकाल के लिए 4577 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया था जिसमें 50.53 करोड़ रुपये जनजातीय विकास कार्यक्रमों पर व्यय किए जाने का लक्ष्य था।
चतुर्थ पंचवर्षीय योजना(1969-74) :
उपरोक्त तीन योजनावधियों की क्रमिक विफलताओं के बावजूद न तो आदिवासी विकास की अवधारणा का पुनर्मूल्यांकन किया गया और न ही किसी प्रकार के संरचनात्मक परिवर्तन हेतु कोई ठोस कदम उठाया गया। जो भी हो, चतुर्थ योजना के अन्त तक 504 जनजाति विकास-खण्डों में कुल आदिवासी आबादी की 43 प्रतिशत जनसंख्या को शामिल कर लिया गया था। इस योजनाकाल में 75 करोड़ रुपये जनजातीय विकास कार्यक्रमों पर व्यय किए जाने थे।
सामान्यतः यह माना गया है कि प्रथम योजनाकाल से चतुर्थ योजनाकाल तक आदिवासी कल्याण कार्यक्रमों पर अधिक धनराशि खर्च की गई, परन्तु टास्क फोर्स के प्रतिवेदन से स्पष्ट होता है कि अनुसूचित जनजातियों पर किया जाने वाला व्यय आनुपातिक रूप से घटता चला गया। प्रथम योजना में यह कुल व्यय का एक प्रतिशत था जो चतुर्थ योजना में कुल व्यय का मात्र 0.4 प्रतिशत ही रह गया।
पंचम पंचवर्षीय योजना (1974-78) :
जनजातीय विकास योजनाओं में पाँचवें योजनाकाल को मील का पत्थर कहा जा सकता है क्योंकि सर्वप्रथम इसी योजना में जनजातीय विकास हेतु व्यापक एवं सघन कार्यक्रम लागू किया गया। इसे जनजातीय उपयोजना का नाम दिया गया।
इस उपयोजना के उद्देश्य थे-
(1) आदिवासियों के सामाजिक-आर्थिक विकास को सुनिश्चित करना, तथा
(2) शोषण के विरुद्ध आदिवासियों को संरक्षण प्रदान करना।
उपयोजना की अवधारणा जिला एवं खण्ड स्तर पर सघनता का क्षेत्र सीमांकित करने के पश्चात एकीकृत क्षेत्र विकास दृष्टिकोण (आई.टी.डी.पी.) ग्रहण करने पर आधारित थी जहाँ जनजातीय आबादी अपेक्षाकृत अधिक थी। बिखरी हुई जनजातीय आबादी वाले राज्य तथा केन्द्रशासित प्रदेशों में संशोधित क्षेत्र विकास दृष्टिकोण (एम.ए.डी.ए.) लागू किया गया किन्तु जनजाति-बहुल राज्यों यथा नगालैंड एवं मेघालय में उपयोजना की आवश्यकता महसूस नहीं की गई क्योंकि सम्पूर्ण योजना का लक्ष्य आदिवासियों का विकास करना था। ऐसे क्षेत्र जिनकी जनजातीय आबादी 50 प्रतिशत या उससे अधिक थी जैसे तमिलनाडु एवं त्रिपुरा, वहाँ अधिसूचित क्षेत्रों में एम.ए.डी.ए. अपनाया गया किन्तु कर्नाटक तथा उत्तर प्रदेश में जहाँ इनकी आबादी फैली हुई थी, परिवार आधारित कल्याण कार्यक्रम लागू किए गए।
इस योजनाकाल के अन्त तक 18 उपयोजना क्षेत्रों को 179 एकीकृत जनजाति विकास परियोजनाओं में विभाजित कर कुल जनजातीय आबादी के 65 प्रतिशत भाग को शामिल कर लिया गया था और जनजातीय विकास हेतु 1102 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था।
उपयोजना क्षेत्र हेतु वित्तीय स्रोत सामान्य राज्य योजनाओं, विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं, केन्द्रीय मन्त्रालयों तथा विशिष्ट केन्द्रीय अनुदानों द्वारा जुटाए गए थे। परिवार आधारित कल्याण कार्यक्रमों के लिए अनुदान, राजकीय कोष एवं ऋण की व्यवस्था विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं द्वारा की गई थी। इस रणनीति के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु आई.टी.डी.पी. तथा आई.टी.डी.ए. लागू किए गए।
आदिवासियों को महाजनों एवं साहूकारों के शोषण से बचाने के लिए एकीकृत ऋण एवं विपणन सेवाएँ जारी की गईं। बकाया ऋणों से मुक्ति दिलाने, भू-हस्तांतरण पर रोक लगाने एवं भू-वापसी कराने, बंधुआ मजदूरी समाप्त करने, औद्योगीकरण एवं विस्थापन से उत्पन्न समस्याओं का निदान करने तथा मद्यपान से मुक्ति दिलाने के लिए आबकारी नीतियों के पुनर्निरीक्षण जैसे तत्वों पर गम्भीरतापूर्वक विचार कर ठोस कदम उठाने की व्यवस्था की गई।
छठी पंचवर्षीय योजना(1980-85) :
इस योजनाकाल में उपयोजना क्षेत्रों के लिए निम्न दीर्घकालिक उद्देश्य निर्धारित किए गए-
(1) जनजातीय क्षेत्रों तथा अन्य क्षेत्रों के विकास स्तर की दूरियों को कम करना तथा
(2) जनजातीय लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना।
इस अवधि में पिछड़े एवं दुर्गम क्षेत्रों का विकास सुनिश्चित करने के लिए कृषि, कुटीर एवं घरेलू उद्योगों, सहायता प्राप्त व्यवसायों, सम्बन्धित सेवाओं एवं न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रमों को लागू किया गया। आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के तहत बहुउद्देशीय विस्तृत सहकारी समितियों (एल.ए.एम.पी.एस.) जैसी संस्थाओं की भूमिकाओं पर विशेष बल दिया गया।
छठे योजनाकाल में सामान्य जनजातीय कल्याण की अपेक्षा परिवार आधारित कल्याणकारी योजनाओं को अधिक श्रेयस्कर समझा गया। पहली बार 50 प्रतिशत से अधिक जनजातीय परिवारों को निर्धनता की रेखा से ऊपर उठाने का संकल्प लिया गया और आदिम जनजातीय समूहों को 50 से बढ़ाकर 72 कर दिया गया।
इस योजनाकाल में 39.64 प्रतिशत आदिवासी परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान कर पूर्वनिर्धारित लक्ष्य से 40 प्रतिशत अधिक कार्य किया गया और जनजातीय क्षेत्रों के विकास हेतु 5,535 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई।
सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90) :
सातवें योजनाकाल में उपयोजना क्षेत्रों के लिए संरचनात्मक नीति निर्धारण हेतु एक कार्यकारी अध्ययन दल का गठन किया गया जिसके द्वारा निम्न नीतियाँ तय की गईं-
(1) कृषि, उद्यान, वन तथा लघु कुटीर व ग्रामोद्योगों की उत्पादन क्षमता में सुधार लाना,
(2) औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देना,
(3) ऋण, बंधुआ मजदूरी, मद्यपान एवं सामाजिक-सांस्कृतिक शोषण का उन्मूलन करना,
(4) आदिम जनजातियों तथा महिलाओं के लिए विशेष कार्यक्रम तैयार करना, तथा
(5) वर्ष 1989-90 में 40 लाख परिवारों को निर्धनता की रेखा से ऊपर उठाना।
इस योजनाकाल में जनजातीय उपयोजना को देश के सभी भागों में लागू करने के लिए 15 राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में कुल 191 आई.टी.डी.पी., 268 एम.ए.डी.ए. तथा 74 जनजातीय समूहों को सम्मिलित किया गया और जनजातीय विकास हेतु 7072.63 करोड़ रुपये आवंटित किए गए।
आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) :
आठवीं योजना के दौरान अनुसूचित जनजातियों के विकास एवं कल्याण पर कार्यदल ने उपयोजना पहुँच में कई गम्भीर खामियों को चिन्हित किया-
- कई राज्यों में टी.एस.पी. के परिणाम अपेक्षाओं एवं विनियोजन से मेल नहीं खाते।
- अनेक राज्यों में जनजतीय विकास पर ध्यान दिए बिना संरचनात्मक विकास पर अत्यधिक बल दिया गया जिसके फलस्वरूप टी.एस.पी. का लाभ गैर आदिवासियों को मिला।
- टी.एस.पी. हेतु आवंटित धनराशि के व्यय की व्यवस्था अत्यन्त अनियमिततापूर्ण और लचीली है।
- गैर-आदिवासियों को शोषण से बचाने के लिए जो वैधानिक प्रावधान हैं उन्हें क्रियान्वित करने में लापरवाही बरती गई है।
- साहूकारों तथा बिचैलियों के चंगुल से आदिवासियों को छुटकारा दिलाने में लैंप्स (एल.ए.एम.पी.एस.) असफल रही है।
अतएव सम्बन्धित केन्द्रीय मन्त्रालयों को निम्न कदम उठाने की सलाह दी गई-
(1) आदिवासी क्षेत्रों के लिए जरूरत आधारित कार्यक्रम बनाना।
(2) समस्त जारी कार्यक्रमों को जनजातीय आवश्यकताओं के अनुरूप ढालना।
(3) केन्द्रीय मन्त्रालयों में जनजातीय कार्यक्रमों के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराना, तथा
(4) आदिवासियों के कल्याण कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की निगरानी हेतु विशेष तौर पर एक वरिष्ठ अधिकारी की नियुक्ति करना।
उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि आठवीं योजना के कार्यदल का दृष्टिकोण न्यूनाधिक तकनीकी-प्रशासकीय था। इस योजनाकाल में आदिवासियों के विकास हेतु 10,000 करोड़ रुपये के व्यय का प्रावधान किया गया।
नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002) :
योजना के उद्देश्य –
- गरीबी उन्मूलन की दृष्टि से कृषि व ग्रामीण विकास को प्राथमिकता देना।
- महिलाओं तथा सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों अनुसूचित जाति औद्योगिक अनुसूचित जन जातियों एवं अन्य पिछड़ी जातियों व अल्पसख्ंयकों को शक्ति प्रदान करना जिससे की सामाजिक परिवतर्न लाया जा सके।
- पंचायती राज व स्वयं सेवी संस्थाओं को बढ़ावा देना।
- समाज को मूलभूत सुविधाएँ- स्वच्छ पेयजल, प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा, आवास सुविधा प्रदान करना।
- मूल्यों में स्थायित्व लाना।
- सभी वर्ग के लिए भोजन व पोषण की सुविधा सुनिश्चित करना।
- आम सहभागिता से विकास प्रक्रिया की पयार्व रणीय क्षमता सुनिश्चित करना।
योजना में परिव्यय-
इस योजना में सार्वजनिक क्षेत्र का परव्यिय 859200 करोड़ रूपये था।
योजना की उपलब्धियां-
- घरेलू बचत की दर 23.3% की रही जबकि लक्ष्य 26.1% आकां गया था।
- इस योजना में विकास दर 5.4% ही रहा जबकि लक्ष्य 6.5% रखा गया था।
- कृषि विकास की दर लक्ष्य से 1.74% पीछे रहते हुए 2.06% रही।
- औद्योगिक विकास दर 8.3% के लक्ष्य से कम 5.6% रहा।
- सन् 1993-94 में ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों का 37.3% था जो की सन् 2000 में 27.01% रह गया।
- विद्युत उत्पादन क्षमता में 19015 मेगावाट अतिरिक्त उत्पादन क्षमता जोड़ा जा सका जो लक्ष्य का मात्र 47% है।
- संचार सर्वे के क्षेत्र में केवल 80% व्यय ही किया जा सका।
- आयात-निर्यात का दर क्रमश: 9.8% व 6.91% रहा।
दसवीं पंचवर्षीय योजना ( 2002-2007) :
- भारत सरकार अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए प्रयासरत है जो कि देश की आबादी का आठ प्रतिशत हिस्सा हैं। इनमें से 18 लाख आदिम जनजाति समूह के हैं।
- दसवीं पंचवर्षीय योजना और 2006-07 की वार्षिक योजना का उद्देश्य अनुसूचित जनजाति के सामाजिक, आर्थिक सशक्तीकरण और सामाजिक न्याय की त्रिस्तरीय व्यवस्था द्वारा इन्हें मजबूत बनाना है। दसवीं योजना के तहत 5,754 करोड़ रुपए योजना के लिए स्वीकृत किए गए जबकि 2006-07 की अवधि के लिए 1,760.19 करोड़ रुपए प्रस्तावित किए गए हैं।
- पांचवी पंचवर्षीय योजना के दौरान अपनाई गई जनजातीय उपयोजना का विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारें भी अनुपालन कर रही हैं। जनजातीय उपयोजना को दी जा रही विशेष केंद्रीय सहायता के अतिरिक्त जनजातीय कल्याण और विकास के लिए चलाई जा रही विशेष योजनाओं के लिए राज्य सरकारों को अनुदान भी प्रदान किया जाता है।
- राष्ट्रीय जनजाति वित्त विकास निगम की स्थापना जनजातियों के आर्थिक विकास पर ध्यान देने के लिए किया गया है। वर्ष 2006-07 की अवधि के लिए इस मद में 30 करोड़ आवंटित किए गए हैं।
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) :
सर्व शिक्षा अभियान सरकार का राष्ट्रीय फ्लैगशिप कार्यक्रम है जिसे देशभर में लागू किया जा रहा है। विश्व बैंक सर्व शिक्षा अभियान के कार्यान्वयन के लिए क्षेत्रवार सहयोग समर्थन के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराता है। विश्व बैंक ने पिछले तीन वर्षों में 2736 करोड़ रुपये की राशि का पुनर्भुगतान किया है। 11वीं योजना के दौरान पहुंच, गुणवत्ता, इक्विटी और योग्यता बढ़ाने के लिए वर्तमान उच्च शिक्षण संस्थानों को सशक्त बनाने के वास्ते कई योजनाएं लागू की गई हैं। सरकार द्वारा नियुक्त प्रमुख विशेषज्ञों के कार्यबल ने एक अति महत्वपूर्ण प्रोत्साहक एवं विनियामक प्राधिकरण के लिए एक विधेयक का मसौदा प्रसारित किया है। भारत को ज्ञान का वैश्विक केंद्र बनाने और अन्य संस्थानों के लिए उत्कृष्टता का मानदंड तय करने, शिक्षण और अनुसंधान में भागीदारी के लिए सरकार का 11वीं और 12वीं पंचवर्षीय योजना में नवीनता के लिए 14 विश्वविद्यालय खोलने का प्रस्ताव है।
राज्यों में प्राथमिक शिक्षा और साक्षरता विभाग तथा उच्चतर शिक्षा विभागों ने अनुसूचित जनजातियों के विद्यार्थियों को विशेष प्रोत्साहन देने की व्यवस्था की है , जिसमे पाठ्यपुस्तकें , वर्दी , ट्यूशन फीस की समाप्ति आदि शामिल है l जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम , कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय , मिड-डे भोजन कार्यक्रम , नवोदय विद्यालय , राष्ट्रीय प्रतिभा खोज स्कीम आदि के अंतर्गत भी अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों को विशेष ध्यान दिया जाता है l
11वीं योजना के दौरान राज्यों को 22408.76 करोड़ रुपये निर्मुक्त किये गए थे जिसमे कुछ वृहद् श्रेणियों नामतः फसल विकास , बागवानी , कृषि यंत्रीकरण , प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन , विपणन एवं फसलोपरांत प्रबंधन , पशुपालन , डेयरी विकास मात्स्यिकी आदि में 5768 परियोजनाओं के कार्यान्वयन में 21,586 .6 करोड़ रुपये का उपयोग किया गया था l
बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) :
12वीं पंचवर्षीय योजना में परिस्थितियों के अनुरूप समावेशी विकास को ध्यान में रखते हुए अलग अलग लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं। सरकार का लक्ष्य ऐसी विकास दर हासिल करना है, जो समावेशी हो, क्षेत्रीय संतुलन वाली हो और जो हर राज्य को अतीत के मुकाबले भविष्य में बेहतर काम करने में सक्षम बनाये। साथ ही विभिन्न समुदायों के बीच अंतर को पाटे, लैंगिक विभेद को खत्म करने के हमारे उद्देश्य को पूरा करे, महिलाओं का सशक्तिकरण करे तथा उनकी सामाजिक तथा शैक्षणिक स्थिति को सुधारे।