प्रारंभिक
जून 1972 को संयुक्त राष्ट्र ने स्टाकहोम (स्वीडन का एक शहर ) में एक पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन रखा l इस आयोजन में मानवीय पर्यावरण के संरक्षण और सुधार के सन्दर्भ में समुचित कदम उठाने का विनिश्चय किया गया l
सम्मेलन में आवश्यक समझा गया कि पूर्वोक्त में पर्यावरण संरक्षण और सुधार से तथा मानवों , अन्य जीवित प्राणियों पादपों और संपत्ति को होने वाले परिसंकट से सम्बंधित जो निर्णय लिए गए हैं , उन्हें लागू किया जाए l
जाहिर है कि भारत ने भी इस सम्मेलन में भाग लिया था तथा वह इस सम्मेलन के निर्णयों का परिपालन करने हेतु कर्तव्यबद्ध है l
इस अंतर्राष्ट्रीय समझौते का सम्मान करते हुए तथा अपनी कर्त्तव्यबद्धता के परिपालन में 23 मई , 1986 को भारत सरकार के द्वारा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम , 1986 को लागू किया गया l इस अधिनियम में कुल 04 अध्याय तथा 26 धाराएं हैं l
पर्यावरण क्या है ?
पर्यावरण को वातावरण या स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें एक व्यक्ति, जीव, या पौधे रहते हैं या कार्य करते हैं | “पर्यावरण” शब्द भौतिक और जैविक दुनिया के सभी तत्वों, साथ ही इन सबके बीच के सम्बन्धों को दर्शाता है। अन्य शब्दों में पर्यावरण उस परिवेश को दर्शाता है जो कि सजीवों को सभी तरफ से घेरे रहता है व उनके जीवन को प्रभावित करता है | यह वायुमंडल, जलमंडल, स्थलमंडल और जीवमंडल से बना होता है। इसके प्रमुख घटक मिट्टी, पानी, हवा, जीव और सौर ऊर्जा हैं।
पर्यावरण के संरक्षण के लिए संवैधानिक प्रावधान :
प्राण का मूल अधिकार एवं स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार – भारतीय संविधान के अनु. 21 में उपबंधित है कि किसी व्यक्ति को उसके प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता से , विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के सिवाय , वंचित नहीं किया जावेगा l पर्यावरण प्रदूषण द्वारा कारित प्रदूषित वातावरण से धीरे – धीरे जहर दिया जाना अनु. 21 का अतिक्रमण है l वास्तव में अनु. 21 के अधीन प्रत्याभूत प्राण के अधिकार में प्रकृति के उपहार का संरक्षण और परिरक्षण अन्तर्वलित है , जिसके बिना जीवन का निर्वाह नहीं किया जा सकता है l इस प्रकार प्राण के अधिकार और पर्यावरण में घनिष्ठ सम्बन्ध है l यदि जीने के लिए स्वस्थ वातावरण ही नहीं मिलेगा , तो प्राण के मूल अधिकार की बात निरर्थक हो जाएगी l
मेनका गाँधी बनाम भारत संघ के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अवधारित किया कि मानव गरिमा के साथ जीने का अधिकार संविधान के अनु. 21 अर्थान्तार्गत मूल अधिकार है l मानव गरिमा के साथ जीने का अधिकार को स्वस्थ पारिस्थितिकी तथा अप्रदूषित वातावरण को सम्मिलित करने वाला अवधारित किया जा सकता है l
इसी प्रकार अनु. 14 में प्रत्याभूत समता के अधिकार का प्रयोग भी पर्यावरण संरक्षण के लिए किया जाता है l
पर्यावरण का संरक्षण मनोरंजन के लिए खुला अन्तरिक्ष एवं शुद्ध हवा , बच्चों के लिए क्रीड़ा स्थल, निवासियों के लिए विचरण स्थल तथा अन्य सुख – सुविधाएं , बड़ी लोक चिंता और महत्वपूर्ण हित के विषय हैं , जिनका विकास की विभिन्न योजनाओं में ध्यान रखना चाहिए l
अनुच्छेद 47 में राज्य पर पोषाहार स्तर एवं जीवन स्तर को ऊँचा उठाने तथा लोक स्वास्थ्य सुधार करने का कर्तव्य अधिरोपित किया गया है l
अनुच्छेद 48-क (42वाँ संविधान संशोधन , 1976) के अधीन पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने के लिए राज्य को निर्देश दिया गया है कि “ राज्य देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा l “
संविधान के अधीन अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के प्रति भारत की बाध्यता हेतु प्रावधान अनुच्छेद 51 में किया गया है l
अनुच्छेद 51-क (छ) पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है जिसमे उपबंधित है कि भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की , जिसके अंतर्गत वन, झील , नदी और वन्य जीव हैं , रक्षा करे और उनका संवर्धन करे तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखे l
धारा 1 में संक्षिप्त नाम , विस्तार और लागू होने के सम्बन्ध में उपबंध है l इस अधिनियम का विस्तार सम्पूर्ण भारत में है l यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस अधिनियम में “जम्मू-कश्मीर को छोड़कर” इस शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है l अतः इस अधिनियम का विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य में भी है l
धारा 2 कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाओं की व्याख्या करता है जो निम्नलिखित हैं :
धारा 2 (क) – “पर्यावरण” के अंतर्गत जल , वायु और भूमि है और वह अंतर्संबंध है जो जल , वायु और भूमि तथा मानवों , अन्य जीवित प्राणियों , पादपों और सूक्ष्मजीव और संपत्ति के बीच विद्यमान है l
धारा 2 (ख) – “पर्यावरण प्रदूषक” से ऐसा ठोस , द्रव या गैसीय पदार्थ अभिप्रेत है जो ऐसी सांद्रता में विद्यमान है जो पर्यावरण के लिए क्षतिकर हो सकता है या जिसका क्षतिकर होना संभावित है l
धारा 2 (ग) – “पर्यावरण प्रदूषण” से पर्यावरण में पर्यावरण प्रदूषकों का विद्यमान होना अभिप्रेत है l
धारा 2 (ङ) या धारा 2 (e) – “परिसंकतमय पदार्थ” (Dilapidated material) से ऐसा पदार्थ या निर्मिती (निर्मित वस्तु ) अभिप्रेत है जो अपने रासायनिक या भौतिक रासायनिक गुणों या हथालने (किसी वस्तु के प्रसंस्करण , भण्डारण , संग्रहण या विनाश आदि के दौरान किसी पदार्थ के निर्मित होने की प्रक्रिया) के कारण मानवों, अन्य जीवों , पादपों , सूक्ष्मजीव , संपत्ति या पर्यावरण को अपहानि कारित कर सकती है l
अध्याय –2
केन्द्रीय सरकार की साधारण शक्तियाँ
धारा 3 में उपबंधित है कि –
- केंद्र सरकार को पर्यावरण के संरक्षण और उसकी गुणवत्ता में सुधार तथा पर्यावरण प्रदूषण के निवारण नियंत्रण एवं उपशमन के लिए समुचित उपाय करने के सन्दर्भ में पर्याप्त शक्ति प्राप्त है l
- केंद्र सरकार पर्यावरण के संरक्षण और प्रदूषण को नियंत्रित करने के सम्बन्ध में निम्नलिखित कार्य कर सकती है –
(a) राज्य सरकारों , अधिकरियों तथा प्राधिकरणों के स्तर पर इस अधिनियम के उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए आवश्यक नियमों का निर्माण तथा आवश्यक कार्यवाहियों का समावेश कर सकती है l
(b) पर्यावरण प्रदूषण के निवारण , नियंत्रण तथा उपशमन के लिए राष्ट्रव्यापी योजनाओं का निर्माण तथा उनका क्रियान्वयन करना l
(c) पर्यावरण के विभिन्न आयामों के सम्बन्ध में किसी कार्य या वस्तु की गुणवत्ता के लिए मानकों का निर्धारण करना ,
(d) विभिन्न स्त्रोतों से पर्यावरण प्रदूषकों के उत्सर्जन या निस्तारण के मानकों का निर्धारण करना
(e) केंद्र सरकार किसी क्षेत्र को ऐसा घोषित कर सकती है कि वहाँ किसी प्रकार की औद्योगिक क्रियाएँ या प्रसंस्करण से सम्बंधित प्रतिबंधित हैं l
(f) किसी प्रकार की दुर्घटनाओं के सम्बन्ध में , जिससे कि प्रदूषण होने की संभावना है , के रक्षा सम्बन्धी उपाय के सम्बन्ध में प्रावधान करना
(g) विभिन्न प्रकार की विनिर्माण प्रक्रियाओं एवं संक्रियाओं में लगी मशीनों का निरिक्षण करना
(h) पर्यावरण प्रदूषण की समस्याओं के सन्दर्भ में अन्वेषणों एवं अनुसंधानों की व्यवस्था करना करना l इस प्रयोजन के लिए प्रयोगशालाओं की स्थापना करना l
(i) पर्यावरण प्रदूषण के सम्बन्ध में जानकारियाँ एवं आवश्यक सूचनाएँ एकत्रित करना तथा जनसामान्य के बीच इनका प्रसार करना ताकि वे सतर्क रहे l
(इस अधिनियम के अधीन गठित प्राधिकरण के सदस्य , अधिकारीगण तथा अन्य कर्मचारी भारतीय दंड संहिता की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक समझे जाएँगे )
(धारा 6 में उपबंधित है कि धारा 3 में वर्णित समस्त बातों तथा प्रदूषण निवारण से सम्बन्धित विषयों पर केंद्र सरकार नियम बना सकती है l )
धारा 4 – पर्यावरण प्रदूषण के निवारण तथा इसे नियंत्रित करने के सन्दर्भ में यदि केंद्र सरकार आवश्यक समझे तो राजपत्र में प्रकाशित कर किसी अधिकारी की नियुक्ति अथवा किसी प्राधिकरण का गठन कर सकती है तथा उनके शक्तियों और दायित्वों का निर्धारण कर सकती है l
धारा 5 – केंद्र सरकार के निर्देश देने की शक्ति के सम्बन्ध में उपबंध करती है l
केंद्र सरकार इस अधिनियम के अंतर्गत नियुक्त एवं गठित अधिकारीयों एवं प्राधिकरणों को पर्यावरण के संरक्षण तथा किसी प्रकार के प्रदूषण के निवारण तथा नियंत्रण के लिए किसी प्रकार का निर्देश जारी कर सकती है l
यह निर्देश किसी प्रक्रिया को बंद करने , उस पर प्रतिबन्ध लगाने या उसे विनियमित करने अथवा विद्युत् या जल या किसी अन्य प्रकार की सेवा को इन प्रक्रियाओं के लिए प्रतिबंधित करने के सम्बन्ध में हो सकता है l
धारा 5(क) – राष्ट्रीय हरित अधिकरण को अपील –
इस धारा में यह उपबंधित है कि यदि कोई व्यक्ति केंद्र सरकार के द्वारा धारा 5 के अधीन दिए गए किसी निर्देश से व्यथित है तो वह राष्ट्रीय हरित अधिकरण के समक्ष इसकी अपील कर सकता है l
राष्ट्रीय हरित अधिकरण :
- पर्यावरण संरक्षण और वन और पर्यावरण से संबंधित कानूनी प्रावधानों के प्रवर्तन तथा इस सम्बन्ध में किसी व्यक्ति को होने वाले नुकसान के लिए राहत तथा मुआवजा देने के लिए 18 अक्तूबर, 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना की गई है l
- यह एक विशिष्ट निकाय है जो बहु-अनुशासनात्मक समस्याओं जैसे पर्यावरणीय विवादों के निपटान के लिये आवश्यक विशेषज्ञता द्वारा सुसज्जित है।
- यह अधिकरण सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रिया द्वारा बाध्य नहीं है, लेकिन इसे नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाता है।
अध्याय – 3
पर्यावरण प्रदूषण का निवारण , नियंत्रण और उपशमन
पर्यावरण प्रदूषण का निवारण , नियंत्रण और उपशमन के लिए निम्नलिखित प्रावधान किये गए हैं :
- कोई ऐसा व्यक्ति, जो कोई उद्योग चलाता है या किसी प्रक्रिया का सञ्चालन करता है, सरकार द्वारा निर्धारित मानकों से अधिक किसी पर्यावरण प्रदूषक का निस्सारण या उत्सर्जन नहीं करेगा अथवा निस्सारण या उत्सर्जन करने की अनुज्ञा नहीं देगा।
- कोई व्यक्ति किसी परिसंकटमय पदार्थ को ऐसी प्रक्रिया के अनुसार और ऐसे रक्षोपायों का अनुपालन करने के पश्चात ही, जो विहित किये जाएँ, हथालेगा या हथालने देगा, अन्यथा नहीं।
- जहाँ किसी दुर्घटना या अन्य अप्रत्याशित कार्य या घटना के कारण किसी पर्यावरण प्रदूषक का निस्सारण विहित मानकों से अधिक होता है या होने की आशंका है वहाँ ऐसे निस्सारण के लिये उत्तरदायी व्यक्ति ऐसे निस्सारण के परिणामस्वरूप हुए पर्यावरण प्रदूषण का निवारण करने या उसे कम करने के लिये आबद्ध होगा l
- साथ ही ऐसी किसी दुर्घटना या दुर्घटना से सम्बंधित आशंका होने पर प्राधिकरणों को यथाशीघ्र सूचित करेगा l यदि अपेक्षा की जाये तो, सभी सहायता देने के लिये आबद्ध होगा।
- ऐसी किसी दुर्घटना या दुर्घटना से सम्बंधित आशंका की सूचना मिलने पर सम्बंधित प्राधिकारी या अधिकरण यथाशीघ्र आवश्यक निवारणात्मक तथा रक्षात्मक उपाय करेंगे l साथ ही ऐसे रक्षात्मक उपाय को करने में जो खर्च हुआ है उसकी ब्याज सहित वसूली दुर्घटना के लिए जिम्मेदार व्यक्ति से कर सकते हैं l
धारा 10 – प्राधिकारियों के किसी स्थान में प्रवेश करने तथा निरीक्षण करने सम्बन्धी शक्तियाँ :
इसके सम्बन्ध में प्राधिकारियों को निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त हैं :
केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी को यह अधिकार है कि वह किसी युक्तियुक्त समय में अपेक्षित सहायता के साथ किसी स्थान में प्रवेश कर सकता है तथा निम्नलिखित बातों की जांच कर सकता है :
- केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नियमों तथा दिए गए आदेशों का पालन हो रहा है या नहीं
- औद्योगिक संयंत्र ,कोई धातु या पदार्थ , कार्यालय के रजिस्टर , अभिलेख तथा अन्य दस्तावेज
- यदि अधिकारीयों को इस बात की शंका है कि किसी भवन में क़ानून का उल्लंघन करते हुए पर्यावरण प्रदूषण से सम्बंधित कोई कार्य हो रहा है तो वह ऐसे किसी भवन में प्रवेश कर उन बातों की जांच कर सकता है l
- ऐसी निरीक्षण की कार्यवाहियों के दौरान किसी व्यक्ति को बाध्य कर सकता है कि वह इस कार्य में उनकी सहायता करे तथा बिने किसी युक्तियुक्त कारण के सहायता ना करने पर उस व्यक्ति को दोषी घोषित कर सकता है l
- ऐसे अधिकारी को दंड प्रक्रिया संहिता के अधीन निरीक्षण सम्बन्धी समस्त अधिकार जिसमे वारंट जारी करने का भी अधिकार शामिल है , प्राप्त है l
अधिकारों का प्रत्यायोजन : केन्द्रीय सरकार अधिसूचना जारी कर इस अधिनियम में उल्लिखित अपने अधिकारों एवं शक्तियों में से जो वह उचित समझे सशर्त रूप से किसी प्राधिकरण या अधिकारी को प्रत्यायोजित कर सकती है l (धारा 23)
धारा 11 – प्राधिकारियों द्वारा नमूने लेने तथा उनके सम्बन्ध में अनुसरण करने की शक्ति एवं प्रक्रिया :
- केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारीयों को इस सम्बन्ध में यह अधिकार प्राप्त है कि वे किसी स्थान (उद्योग , कारखाने या किसी भवन ) में प्रवेश करके वायु, जल, मृदा या अन्य आवश्यक पदार्थों के नमूने निर्धारित रीति से एकत्र कर सकते हैं l
- इस सम्बन्ध में उस उद्योग या कारखाने या स्थान के प्राधिकृत व्यक्ति अथवा उसके अभिकर्ता को इसकी सूचना देगा ,
- उस उद्योग या कारखाने के प्राधिकृत व्यक्ति अथवा उसके अभिकर्ता की उपस्थिति में ही नमूना लिया जावेगा ,
- नमूना लेने के पश्चात उसे सीलबंद करके सम्बंधित दस्तावेज पर प्राधिकारी तथा उस उद्योग या कारखाने या स्थान के प्राधिकृत व्यक्ति अथवा उसके अभिकर्ता दोनों हस्ताक्षर करेंगे,
- यदि उस स्थान पर जहाँ नमूना लिया जाना है , प्राधिकृत व्यक्ति अथवा उसके अभिकर्ता अनुपस्थित हैं तो उन्हें उपस्थित होने कि सूचना दी जावेगी ,
- प्राधिकृत व्यक्ति अथवा उसके अभिकर्ता यदि उपस्थित नहीं होता है या वह नमूने में हस्ताक्षर करने से मना करता है तो अधिकारी उसकी अनुपस्थिति में ही नमूना एकत्र कर सकता है और उस पर स्वयं हस्ताक्षर कर प्रक्रिया को आगे बाधा सकता है,
- इसके पश्चात केंद्र सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला में उसे अविलम्ब रूप से परिक्षण के लिए भेजा जावेगा,
पर्यावरण प्रयोगशाला का गठन तथा उनकी मान्यता :
- केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना जारी कर एक या एक से अधिक पर्यावरण प्रयोगशालाओं की स्थापना कर सकेगी तथा उन्हें मान्यता दे सकती है तथा उनके कार्यों , रिपोर्ट के लिये सन्देय फीस और उनके सन्दर्भ में अन्य बातों को निर्धारित कर सकती है l
- विशेलषण के लिये भेजे गए वायु, जल, मृदा या अन्य पदार्थ के नमूनों के विश्लेषण के प्रयोजन से विश्लेषकों की नियुक्ति कर सकती है l इन विश्लेषकों द्वारा हस्ताक्षरित रिपोर्ट को किसी मामले में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है l
(धारा 12, 13, 14)
दंड (शास्ति) के सम्बन्ध में प्रावधान :
यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के किसी उपबंध या अधिनियम के अधीन बनाए गए किसी नियम , दिए गए किसी प्रकार के आदेश का पालन करने में असमर्थ रहता है या जानबूझ कर उल्लंघन करता है तो वह अधिकतम 5 वर्ष के लिए कारावास या 1 लाख रुपए जुर्माना अथवा दोनों से दण्डित किया जा सकता है l
यदि इस प्रकार का कोई अपालन या उल्लंघन सम्बन्धी अपराध एक वर्ष से अधिक समय तक जारी रहता है तो कारावास की अवधि 7 वर्ष तक तथा जुर्माने की रकम प्रत्येक दिन 5 रुपए के हिसाब से अतिरिक्त रूप से वसूला जा सकता है l (धारा 15)
यदि अधिनियम के अपालन या उल्लंघन से सम्बन्धी कोई अपराध किसी कंपनी के द्वारा किया जाता है तो उस कंपनी का संचालक या भारसाधक कोई व्यक्ति और कंपनी दोनों को पर दंड सम्बन्धी कार्यवाही होगी l
ऐसा अपराध कंपनी के निदेशक , प्रबंधक , सचिव या अन्य अधिकारी के किसी प्रकार के गलत बातों पर अपनी सहमती देना या मौनाकुलता , किसी आवश्यक कार्य को किये जाने की उपेक्षा करना जैसे कार्य भी हो सकते हैं l (धारा 16)
यदि अधिनियम के अपालन या उल्लंघन से सम्बन्धी कोई अपराध किसी सरकारी विभाग के द्वारा हुआ है तो उस विभाग के विभागाध्यक्ष को तथा अन्य अधिकारीयों पर दंड सम्बन्धी कार्यवाही होगी l (धारा 17)
अध्याय – 4
सद्भावनापूर्वक की गई कार्यवाही के लिए संरक्षण : यदि किसी अधिकारी या प्रधिकरण के द्वारा इस अधिनियम के पालन या अनुसरण करते समय कोई सद्भावनापूर्ण कार्य किया जाता है, जिससे आंशिक या पूर्ण रूप से किसी व्यक्ति को कष्ट हो या उसके किसी प्रकार के विधिक अधिकार का उल्लंघन हो तो इस प्रकार के कार्य के लिए उन अधिकारीयों या प्राधिकरणों पर किसी प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं होगी l अर्थात उन अधिकारीयों तथा प्राधिकरणों को अपने कर्तव्य के पालन के सम्बन्ध में किये गए कार्यों के सन्दर्भ में किसी भी प्रकार की न्यायिक अथवा दांडिक कार्यवाहियों से संरक्षण प्राप्त है l (धारा 18)
न्यायालय द्वारा अपराधों का संज्ञान लिया जाना :
- इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के सम्बन्ध में अधिनियम के अंतर्गत नियुक्त प्राधिकारी या गठित प्राधिकरण के द्वारा वाद दायर किये जाने पर ही कोई न्यायालय उसका संज्ञान लेगी l
- कोई व्यक्ति जिसने इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के कारित होने की तथा इस सम्बन्ध में अपने वाद दायर करने के आशय की सूचना सरकार , किसी प्राधिकरण या किसी अधिकारी को निर्धारित रीति से की हो , उसके कम से कम 60 दिनों के पश्चात वह किसी न्यायालय में वाद दायर करता है, तब न्यायालय ऐसे मामले पर संज्ञान ले सकती है l (धारा 19)
किसी सिविल न्यायालय को, केन्द्रीय सरकार या किसी अन्य प्राधिकरण या अधिकारी द्वारा, इस अधिनियम के अधीन किये गए किसी कार्रवाई या निकाले गए आदेश या दिये गए निदेश के सम्बन्ध में कोई वाद या कार्यवाही ग्रहण करने की अधिकारिता नहीं होगी।
अर्थात किसी प्राधिकरण या अधिकारी द्वारा दिए गए किसी आदेश या निर्देश के विरुद्ध किसी सिविल न्यायालय में अपील नहीं किया जा सकता l
केन्द्रीय सरकार के नियम बनाने की शक्ति :
- केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम को क्रियान्वित करने के उद्देश्य से नियम बना सकती है l
- ये नियम निम्नलिखित के सम्बन्ध में हो सकते हैं :
- परिसंकटमय पदार्थों के नियंत्रण और निस्तारण से सम्बंधित
- कारखानों , उद्योगों या अन्य किसी संस्थानों में उत्पादन कार्यों के दौरान निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों , प्रदूषकों या प्रदूषण के अन्य कारकों के सम्बन्ध मानकों का निर्धारण
- वायु, जल , मृदा या अन्य पदार्थों के नमूने लेने की रीति से सम्बंधित नियम
- निरीक्षण अधिकारीयों तथा विश्लेषकों की आहर्ताओं से सम्बंधित नियम
इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिये रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिये सहमत हो जाएँ तो तत्पश्चात वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएँ कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात वह निष्प्रभाव हो जाएगा। किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
स्टाकहोम सम्मेलन
5 जून से 16 जून, 1972 तक स्वीडन के प्रमुख शहर स्टॉकहोम में मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन आयोजित किया गया। यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा पर्यावरण संबधी चिंताओं पर चर्चा का पहला प्रयास था। पहली बार वायु-प्रदूषण और रसायनिक विषैलेपन जैसे मुद्दे विश्व स्तर पर चर्चा का विषय बने। इसमें अर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संगठित प्रयासों की शुरूआत की गई। इस सम्मेलन में 113 देशों ने भाग लिया। स्टॉकहोम सम्मेलन के परिणामस्वरूप एक ‘स्टॉकहोम घोषणा पत्र’ जारी किया गया जिसमें मानव पर्यावरण की रक्षा के लिए 26 सिद्घांत और उनको क्रियान्वित करने के लिए 109 सुझाव शामिल किए गये।
मानव पर्यावरण घोषणापत्र दो भागों में बँटा हुआ है। पहले भाग में 7 सामान्य टिप्पणियाँ हैं जैसे मनुष्य अपने पर्यावरण का निर्माता है, पर्यावरण व्यक्ति को सामाजिक, नैतिक, आध्यात्मिक उन्नति के लिए अवसर प्रदान करता है, मानव के अस्तित्व के लिए पर्यावरण सुरक्षा आज सबसे बडा मुद्दा है, जनसंख्या वृद्धि पर्यावरण सुरक्षा के लिए एक समस्या है, वह समय आ गया है जब पर्यावरण रक्षा के लिए विश्व समुदाय को ईमानदारी से प्रयास करना होगा आदि। घोषणा के दूसरे भाग में 26 सिद्घांतों को उल्लेख है जिनमें मुख्य निम्न हैं:-
- मानव की यह जिम्मेदारी है कि वर्तमान के साथ-साथ आगे आने वाली पिढियों कि लिए पर्यावरण को सुरक्षित रखे। अर्थात सतत विकास पर जोर दिया गया l
- पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए उचित योजना तथा प्रबंध होना चाहिए।
- पृथ्वी की संसाधनों की पुर्ननिर्माण करने की शक्ति को अवश्य बनाए रखना चाहिए। अर्थात अतिदोहन से बचना चाहिए l
- पृथ्वी के न खत्म होने वाले संसाधनों का इस प्रकार प्रयोग होना चाहिए ताकि वे आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित रह सके।
- खतरनाक रसायनिक पदार्थों तथा तत्त्वों के उत्सर्जन पर रोक लगानी चाहिए जो पर्यावरण को हानि पहुँचाते हैं। सौर सुजला योजना , उज्जवला योजना इसी पर आधारित है l
- सभी देशों को समुद्रीय प्रदूषण को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
- एक अच्छे पर्यावरण के लिए समाजिक तथा आर्थिक विकास अनिवार्य शर्त है।
- पर्यावरण संरक्षण के लिए सभी देशों को एकीकृत तथा समन्वित विकास योजनाएं बनानी चाहिए।
- मानव रिहायश तथा शहरीकरण को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ना चाहिए।
- पृथ्वी तथा प्रौद्योगिकी को मानव विकास में योगदान के साथ-साथ पर्यावरण की समस्याओं के लिए समाधान भी खोजना चाहिए।
ये सिद्घांत पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित हैं। इसमें देशों के मूलभूत अंतर्राष्ट्रीय दायित्व की ओर संकेत किया गया है।
स्टॉकहोम सम्मेलन में 5 जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के रूप में मनाने की भी घोषणा की गई तथा संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था में शामिल सरकारों तथा संगठनों से आग्रह किया गया कि वे प्रत्येक वर्ष इस दिन विश्वव्यापक क्रियाओं का निरीक्षण करें ताकि पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति महत्त्व को पुन: सुनिश्चित किया जा सके। इसके अलावा एक अन्य प्रस्ताव भी पास किया गया जिसमें पर्यावरण के प्रति अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए संस्थागत और वित्तिय व्यवस्था का प्रावधान किया गया।
अन्य निर्णयों में, पर्यावरण कार्यक्रम के लिए एक गवर्निग कौंसिल की स्थापना का प्रस्ताव रखा गया जिसके लिए एक पर्यावरण महासचिव तथा पर्यावरण कोष की व्यवस्था का प्रावधान किया गया। गवर्निग काऊंसिल पर्यावरण की सुरक्षा विशेषकर विकास से संबंधित दीर्घकालीन तथा अल्पकालीन योजनाओं का संचालन करेगी। आण्विक अस्त्रों के परीक्षण प्रस्ताव में आणवीक परीक्षणों की आलोचना की गई तथा राज्यों से ऐसा परीक्षण नहीं करने को कहा गया जिनसे पर्यावरण प्रदूषित हो। सम्मेलन में यह संस्तुति की गई कि संयुक्त राष्ट्र महासभा पहल करके मानवीय पर्यावरण पर द्वितीय सम्मेलन उपयुक्त समय पर बुलाए जाने का निर्णय ले।